पंच बद्री मन्दिर

देवभूमि उत्तराखण्ड में बदरी-केदार धाम का जितना महात्म्य है उतना ही पंच बदरी और पंच केदार का भी है। ये मंदिर भी बदरी-केदार धाम के ही अंग हैं। इनमें से कुछ स्थल साल भर दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं, लेकिन शेष में चारधाम के समान ही कपाट खुलने व बंद होने की परंपरा है। पंच बदरी हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं। 'श्रीबदरी नारायण', 'आदि बदरी', 'वृद्ध बदरी', 'योग-ध्यान बदरी' और 'भविष्य बदरी' को ही 'पंच बदरी' कहा गया है। 

श्री बदरी नारायण- 
बद्रीनाथ मन्दिर भारतीय राज्य उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित है। मंदिर समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के देवता विष्णु के "बद्रीनारायण" रूप की पूजा होती है। यहाँ उनकी 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित मूर्ति है जिसके बारे में मान्यता है कि इसे आदि शंकराचार्य ने 8 वीं शताब्दी में नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इस मूर्ति को भगवान् विष्णु के आठ स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। मन्दिर वर्ष के छह महीनों अप्रैल के अंत से लेकर नवम्बर की शुरुआत तक सीमित अवधि के लिए ही खुला रहता है। 

आदि बदरी-
आदिबद्री मंदिर प्राचीन मंदिर का एक विशाल समूह है | इस मंदिर का प्राचीन नाम “नारायण मठ” था | यह मंदिर कर्णप्रयाग-रानीखेत मार्ग पर कर्णप्रयाग से १७ किमी दूर स्थित है। यह तीर्थ स्थल 16 मंदिरों का एक समूह है जिसका मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है लेकिन वर्तमान समय में 16 मंदिर में से केवल 14 ही बचे है | आदिबद्री मंदिर का आकर पिरामिड रूप की तरह है | मान्यता है कि आदिबद्री मंदिर भगवान नारायण की तपस्थली थी | माना जाता है कि यह तीर्थ स्थल गुप्तकाल में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया आदि गुरु शंकराचार्य सबसे पहले यहाँ आये थे तब से इस स्थान को “आदिबद्री”कहा जाने लगा | इस पवित्र स्थान के निकट तीर्थ कर्णप्रयाग है जो कि पंच प्रयाग में से एक धार्मिक प्रयाग है |

वृद्ध बदरी-
Vridh or Vridha Badri Temple (वृद्ध बद्री मंदिर ...वृद्ध बदरी मंदिर ऋषिकेश-जोशीमठ-बद्रीनाथ मार्ग पर जोशीमठ से 7 किमी दूर अणिमठ गाँव में समुद्र तल से 1,380 मीटर ऊपर स्थित है। मान्यता है कि विष्णु ऋषि नारद से पहले वृद्ध या बूढ़े व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए थे जिन्होंने यहां तपस्या की थी। इस प्रकार इस मंदिर में स्थापित मूर्ति एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में है। इस मंदिर की खासियत इसका सालभर खुले रहना है।

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योग-ध्यान बदरी-
योग-ध्यान बदरी मंदिर जोशीमठ से 22 किमी दूर पांडुकेश्वर गाँव में समुद्र तल से 1920 मीटर ऊपर स्थित है। योगध्यान बद्री, जिसे योग बद्री भी कहा जाता है । मान्यता  है कि पांडवों के पिता – राजा पांडु भगवान विष्णु का ध्यान करने के लिए भगवान ने दो संभोग हिरणों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए  योगध्यान बद्री गए थे |  माना जाता है कि पांडु ने योगध्यान बद्री मंदिर में विष्णु की कांस्य प्रतिमा स्थापित की थी। छवि एक ध्यान मुद्रा में है और इस प्रकार छवि को योग-ध्यान बद्री कहा जाता है। मूर्ति शालिग्राम पत्थर से तराशी गई है। पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध में अपने चचेरे भाइयों कौरवों को हराने और मारने के बाद पांडव पश्चाताप करने के लिए यहां आए थे। उन्होंने अपने पोते परीक्षित को हस्तिनापुर का राज्य सौंप दिया और हिमालय में तपस्या करने चले गए।

भविष्य बद्री - 
भविष्य बद्री मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक एवम् पवित्र मंदिर है जो जोशीमठ- लाता-मलारी मार्ग पर जोशीमठ से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर तपोवन (चार किमी पैदल मार्ग) के आस-पास घने जंगलों के बीच में स्थित है यह मंदिर समुद्रतल से 2744 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है । भाविष्य बद्री का शाब्दिक अर्थ होता है "भविष्य की बद्री"। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जोशीमठ मैं भगवान नरसिंह की मूर्ति है जिसका हाथ पतला होता जा रहा है जिस दिन यह हाथ टूट कर गिर जायेगा, उस दिन नर नारायण पर्वत आपस मैं मिल जायेंगे फिर बद्रीनाथ जाने का मार्ग बंद हो जायेगा और नए स्थान (भविष्य बद्री ) पर बद्रीनाथ के दर्शन होंगे ।

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